आज भी तेरी याद में तुझे खत लिखा करते हैं डरते हैं तुझे भेजने से तो खुद ही पढ़ लिया करते हैं
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सिलवटें
रेत की तरह ज़िंदगी हाथों से निकलती चली जाती है हम तो बस किस्से हैं दबे कहीं सिलवटों में इसकी
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कैसी यह कश्मकश …
जो साथ हों लेंतो अपने बगावत कर जायेंगेजो साथ न देंतो तुम्हारे गुनेहगार कह लाएंगेजो दिल की सुनेंतो दिमाग़ के दुश्मन बन जायेंगेऔर जो दिमाग़ की सुनेंतो अपने आप के न हो पाएंगेकैसी यह कश्मकश हैजाएं चाहे जिस भी रास्तेकिस्मत से तकरार तय है
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निगाहों में जिनकी हम…
ग़म तो जनाबइस बात का है कीनिगाहों में जिनकी हमताउम्र रहना चाहते थेउन्हें नज़रों से गिरने मेंज़्यादा वक़्त न लगाहम सपने बुनते रह गएऔर वो दबे पाओं दग़ा दे गए
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पलटवार
यूँ बिन बताए आधी रात आनासब जान चुके हैंपरेशान हो चुके हैंअब शांत हो चुके हैंयूँ खिड़की से सीटियां मारनासब जान चुके हैंपरेशान हो चुके हैंअब हार चुके हैंवक़्त का खेल तो देखोकिस्मत पलटवार कर गयीअब जो जा चुकी हो तो सुनोख्यालों मेंयूँ बिन बताए न आया करोभूला चुका हूँ मैंहार चुका हूँ मैंयूँ दिलोदिमाग…
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जो दास्ताँ…
जो दास्ताँ जुबां पर हैवह उन्हें बताते कैसेकहते भी तो क्यावो अपनाते उन्हेंगैरों के बीच जोरातें काटी हमनेउनके चौखट परअजनबी का दर्जान गवारा था हमेंज़िन्दगी बीत गयीदो पल की दिल्लगीके आस मेंऔर जो दास्ताँ जुबां पर थीबरसों हुए उन्हें भुलाये हमें
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तन्हाई
तन्हाइयों की शिकायत करें भी तो कैसे इन्होंने ता उम्र अपनों की तरह साथ निभाया है
Read Moreदिलासा
शाम को जबपंछी घर लौटते हैंउन्हें देख दिल कोदिलासा दे देते हैंमेरा आंगन न सहीकिसीकी तो बगियाआज रोशन हुई
Read Moreसांसें
उन खामोशियों पे दिल हारती चली गयी… शब्द क्या कह पाते जो तुम्हारी सांसें बयाँ कर गयीं…
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ऐ जिंदगी…
पल दो पल ठहरकर कभी हमें भी तो देख जिंदगी तेरी मीठी शरारतों में घुलना बाकी है अभी… पल दो पल पलटकर कभी हमें भी तो देख जिंदगी तेरी नमकीन मस्तियों को चखना बाकी है अभी… पल दो पल मुस्कुराकर कभी हमें भी तो देख जिंदगी तेरी हसीन मधोशियों में बिखरना बाकी है अभी…
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आज रात फिर …
आज रात फिरदरवाजे परतुम्हारी यादोंने दस्तक दीघंटों वे ठहरे रहेकी कब हम उन्हेंभीतर लें, बतियाएंसारी रातचारपाई से लिपटेहमने उन्हें अनसूना कियासारी उम्रइन यादों नेआंखें नम ही तो की हैं
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कभी तो ऐसा हो …
कभी तो ऐसा होमैं कुछ न कहूँऔर तुम सुन लोमैं नज़रें चुराऊँऔर तुम देख लोमैं उम्मीदें छुपाऊँऔर तुम जान लोमैं हसरतें मिटाऊंऔर तुम पढ़ लोकभी तो ऐसा होमैं खुदको रोकूंऔर तुम पहचान लोमैं कतरा बिखरुंऔर तुम थाम लो
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नासमझी…
इश्क़ कुछ इस कदर हुआ उनसेउनकी गलतियां अपनी लगने लगींउनकी खामियां अच्छी लगने लगींउनकी नासमझी की हद तो देखियेवह हमें हीदोषी करार करअनजानों की तरहछोड़ चले ~~~~~ आशा सेठ
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रंगी हूँ तुझ में…
जैसे है पीला सूरज का नीला आकाश का हरा बरसात का सफ़ेद सर्दी का जैसे है भूरा धरती का नारंगी शूर का लाल प्रेम का काला झूठ का वैसे ही रंगी हूँ तुझ में सदा के लिए तेरे बिना मेरी पहचान क्या? तुझसे जुदा मेरा अस्तित्व क्या? ~~~~~ आशा सेठ
Read Moreख्वाहिशें बेशुमार…
मत पूछो हमसे की दिल का हाल क्या है… क्या करे बेचारा इसकी ख्वाहिशें बेशुमार हैं… ~~~~~ आशा सेठ
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तेरी यादें…
किस गली जाकर छुपूँ की तेरी यादें पीछा करना छोड़ दें हर नुक्कड़ पर इनका बसेरा है हर चौराह इनका मेला भरा रात ठहरूं चाहे जहाँ सुबह इन्ही की बाहों में होती है सोचता हूँ, मैं हूँ यहीं या बस इनकी सिलवटों में गुम कहीं तेरे जाने से जो गम न हुआ वह इनकी साथ…
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“कौन आया है?”
धुआं धुआं हुआ उस गली का झोंका जो कभी गुलाब सा महेकता था खोया हुआ है अब उस देश का सूरज आज न जाने कहाँ ढले कभी दर्जनों कोयलें एक साथ उड़ान भर्ती थीं जहाँ आज एक कौवे तक को नज़र तरसती है चांदनी रातों में उस शहर की चौबारें घुँघरुओं की बौछार से चहकती…
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जब याद तुम आते हो …
पुरानी यादों को निचोड़कर कभी ख़ुशी तो कभी ग़म पी लिया करते हैं जब याद तुम आते हो दुनिया से छिपकर रो लिया करते हैं अपनी खामियों पर खुद को जी भरके कोस लिया करते हैं जब याद तुम आते हो दुनिया से छिपकर रो लिया करते हैं तुम्हारे वादों में ज़िन्दगी का मकसद ढूंढ…
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एक छत के नीचे…
सुबह जब घर से निकलता उसका चेहरा दिल में लिए चलता रास्ते भर यही सोचता कब तक ऐसे चलेगा फटे पुराने चप्पल रास्तों से लड़ते इसी तरह रोज़ गुज़ारे की तलाश में दिन से रात रात से दिन करता शाम को जब घर लौटता वो बैठी रहती पैर पसारे मेरा इंतज़ार करते मुझे देख मुस्कुराती…
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मत कहो…
मत कहो यह किस्मत की बात है… जहां बारातों में हज़ारों के निवाले कूड़े दान को खिलाये जा रहे हैं पर एक पिता अपने परिवार को दो वक़्त की रोटी तक को खून बहा रहा है मत कहो यह किस्मत की बात है… की बंद घरों में दीवारों पे लटकी तसवीरें घंटो ऐसी का हवा…
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कभी जो…
कभी जो नज़रें मिलीं पलकें झुका न लेना कभी जो मेरी यादों ने दस्तक दी उन्हें ठुकरा न देना उम्मीद लिए देहलीज़ पर खड़ा हूँ इस इंतज़ार में कब मेरी गली से गुज़रोगे कभी जो मेरी आवाज़ सुनो अजनबी कहकर मुँह फेर न लेना ~~~~~ आशा सेठ
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